My Diary...
Wednesday, December 3, 2014
Din wo kuch aur the
दिन वो कुछ और थे
जब जेबों में ज़िन्दगी लिए फिरा करते थे
मंज़िलों का ठिकाना ना था
माथे पे कोई शिकन ना थी
दिन वो कुछ और थे
जब वक़्त की डोर में उलझे न थे
दोस्तों से दिन की शुरुआत थी
और उन्ही से रात का आगाज़
:) :) :) :) :)
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