ए राही क्यूँ नहीं समझता तू ,
क्या ज़िन्दगी की इस दौड़ में बस भागा चला जाएगा?
मन की हर मुराद को मसल,
क्या बड़ी इमारतें बनाता चला जाएगा?
इक पल तो बैठ, सांस ले ज़रा ,
बेड़ियाँ हटा, थोडा सा जी ले ज़रा।
क्यूंकि ये पल, गर हो गया कल,
तो बहुत याद आएगा, बहुत याद आएगा, बहुत आएगा।
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